नमस्ते दोस्तों स्वागत है हमारे ब्लॉग पर आज हम आपके लिए एक सीख देने वाली प्रेरणा दायक कहानी लेकर आए हैं आशा करता हूं कि यह नैतिक कहानी आपको जरूर पसंद आयेगा।
बच्चों के लिए प्रेरणा दायक नैतिक कहानी - moral story in hindi for children
एक बार एक यात्री अपने ऊंट पर बैठकर यात्रा कर रहा था। चलते-चलते एक जंगल आया। जंगल में आग लगी हुई थी। ऐसा लगता था जैसे किसी पूर्व यात्री ने आग जलाई होगी। सूखी लकड़ियों और हवा के झोंके से उस आग ने भयावह रूप ले लिया था। इस भीषण आग को देखकर भी उस यात्री ने अपनी यात्रा जारी रखी। पर तभी किसी ने उसे पुकारा उसने इधर-उधर देखा तो आग के बीच में गिरा हुआ एक बड़ा सर्प दिखाई दिया।
लपटों से घिरा हुआ सर्प गर्मी से छटपटा रहा था। उसकी हालत देखकर यात्री को दया आ गई। यात्री जाकर उसने पूछा, क्या मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूं? हां कृपया यहां से निकलने में किसी तरह मेरी सहायता करें सर्प ने कहा।
यात्री ने पलभर विचार किया उसने अपना मोटा जिन का थैला निकालकर उसमें एक रस्सी बांधी और उसका एक सिरा बरछे से बांधकर थैला आग में फेंक दिया। सर्प ज्योही उस थैले में प्रविष्ट हुआ यात्री ने थैले को खींच लिया। सर्प की जान बच गई बाहर आने पर थैले से बाहर निकलते ही उसने अपना फन फैलाया और यात्री को काटने चला।
एक झटके में यात्री ने पीछे हटकर अपना बचाव किया और उसने बोला, अरे, तुम तो अत्यंत कृतघ्न जंतु हो, क्या तुम मुझे डसना चाहते हो?
हंसते हुए सर्प ने उत्तर दिया, “ओ मनुष्य यह तो मेरा स्वभाव है। अब मैं तुम्हें या तुम्हारे ऊंट को डसे बिना नहीं जाने दूंगा।
सर्प की बातों से होशियार होते हुए यात्री ने पुनः कहा, तुम क्या इतने निर्दयी हो कि मेरी सहायता भूलकर बदले में मुझे ही क्षति पहुंचाना चाहते हो?
सर्प बिना किसी पछतावे से कहा, “तुमने जो किया वह दया भाव से किया एक ऐसे जंतु पर दया दिखाई जिसका स्वभाव ही दूसरों को क्षति पहुंचाना है। मुझ जैसे भयानक जंतु की सहायता करके तुमने मूर्खता दिखाई है।”
यात्री ने कहा मैं तुम्हारी बातों से सहमत नहीं हूं। चलो किसी और से हम लोग मध्यस्थता करवाते हैं।
सर्प ने अपने चारों ओर देखा तो उसे पास में ही एक गाय चरती दिखाई दी। उसने यात्री से कहा, “चलो गाय से चलकर पूछते हैं कि हममें से कौन सही है।”
दोनों ने गाय के पास जाकर अपनी कहानी सुनाई। गाय ने सब कुछ सोचा और फिर यात्री से बोली “मेरे विचार से मनुष्य जाति का यह नियम है कि अच्छाई की भरपाई बुराई से ही होती है। इसलिए तुम्हारी दयालुता के उपहार स्वरूप सर्प को तुम्हें डसने का अधिकार है।”
यात्री ने आश्चर्यचकित होकर पूछा ऐसा तुम कैसे कह सकती हो? गाय ने उत्तर दिया, मेरा ही उदाहरण ले लो कई वर्षों तक मैंने किसान की सेवा की। मैंने बछड़ा को जन्म दिया। पूरे परिवार को दूध पिलाया सभी मेरे ऊपर आश्रित थे। पर जब मैं वृद्ध हो गई किसी काम की ना रही तो मुझे जंगल में छोड़ दिया। मैं इधर-उधर घूमती थी जो मिलता खाती थी फिर मैं मोटी हो गई किसान ने मुझे एक दिन देखा तो पकड़कर कसाई को बेच दिया। कल ही उसने अच्छे पैसे में मुझे बेचा था। आज मुझे कसाई खाना ले जाया जाएगा।
सर्प ने एक लंबी सांस से खींचकर कहा, अब समझ गए? चलो तर्क मत करो। अब मैं तुम्हें डसूंगा, और डंसने के लिए सर्प ने अपना फन उठाया।
हड़बड़ा कर यात्री थोड़ा पीछे हाटता हुआ बोला, नहीं नहीं यह बात तो एकदम गलत है। सर्प ने कहा, तुमनेे अभी-अभी गाय को मेरा अनुमोदन करते हुए सुना, अब तुम और क्या चाहते हो?
यात्री ने कहा किसी एक जंतु की बात से किसी निर्णय पर पहुंचना सही नहीं है। चलो उस वृक्ष से चलकर पूछते हैं।
यात्री के दिखाएं वृक्ष की ओर सर्प ने देखा वह एक सूखा हुआ बिना पत्तों का पेड़ था। सर्प और यात्री दोनों उस वृक्ष के पास पहुंचे और अपनी सारी घटित घटना को वर्णन करने के पश्चात पूछा, बताओ अच्छाई के बदले तुम क्या दोगे?
वृक्ष ने कहा, “अच्छाई का बदला बुराई से देना मानव जाति के लिए बड़ी साधारण सी बात है। मेरी कथा सुनकर आप लोग सब समझ जाएंगे। मैं कभी हरा-भरा फलने फूलने वाला वृक्ष था। इस रास्ते से जाने वाला हर व्यक्ति मेरी छाया में बैठता था। और मेरे फल खाता था। जब मैं वृद्ध हो गया फल आने बंद हो गए तब लोग मेरी तो हनिया काट कर ले जाने लगे। वह या तो कुछ बनाते थे या फिर जलाने के लिए प्रयोग करते थे मैंने सदा लोगों का भला किया फिर भी जब मैं सूख गया तो लोगों ने मुझे छोड़ दिए।
वृक्ष के चुप होते ही सर्प ने यात्री से कहा, तो मानव अब बताओ जिन लोगों ने मनुष्य का सदा भला किया उन्हें बदले में क्या अन्याय नहीं मिला?
यात्री ने कहा, यह सत्य है कि मानव ने इस दोनों के साथ बुरा किया। पर मैं इतनी शीघ्र हार नहीं मान सकता। चलो एक और व्यक्ति से उसकी राय लेते हैं। यदि वह भी तुम्हारी बातों से सहमत होता है तो मैं तुम्हारी बात मान लूंगा।
भाग्य बस उसी समय एक लोमड़ी उधर आई और सारी बातें सुनकर यात्री से बोली, अरे मानव तुम्हें पता नहीं है क्या की अच्छाई का प्रतिदान सदा बुराई से ही होता है? पर मुझे यह बताओ कि तुमने सर्प के साथ क्या अच्छा किया है जिसका प्रतिदान वह सजा देकर करना चाहता है?
यात्री ने सर्प को बचाने का वृतांत सुनाया तो लोमड़ी ने कहा, मानव तुम बहुत ही बुद्धिमान लगते हो पर तुम झूठ क्यों कह रहे हो?
यात्री यह सुनकर चौक गया। फिर सर्प ने कहा, क्यों? हां यह सत्य ही तो कह रहा है इसने मेरी रक्षा की थी।
गर्दन हिलाती हुई लोमड़ी बोली, हूं.. मुझे तुम दोनों की बात पर विश्वास नहीं है।
सर्प ने फिर लोमड़ी को वह थैला और बरछा दिखाकर विश्वास दिलाया कि इसी से इसने मेरी रक्षा की थी।
ऐसा लगा जैसे लोमड़ी को बहुत आश्चर्य हो रहा है, उसने कहा, तुम्हें क्या लगता है मैं इस थैले को देखकर विश्वास कर लूंगी? मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा है। कि यह थैला तुम्हें बचा सकता है। तुम इतने बड़े हो और यह थैला इतना छोटा है।
सर्प ने कहा, अरे मैं कुंडली मारकर छोटा हो जाता हूं। मैं प्रमाण दे सकता हूं। ठहरो अभी मैं छोटा होकर दिखाता हूं कि कैसे मैं थैले में चला गया और इसने मुझे बचाया।
सर्प ने यात्री से उसका थैला खोलने का अनुरोध किया। और वह पुनः थैले में समा गया।
लोमड़ी ने कुछ भाव भंगिमा के साथ यात्री से कहा, जो भी भलाई का प्रतिदान बुराई से करें उसके प्रति कोई दया-भाव नहीं रखना चाहिए।
लोमड़ी के कहने का तात्पर्य समझकर यात्री ने तुरंत थैला बंद कर अच्छे से बांधकर उसे जलती हुई आग में फेंक दिया। इस प्रकार यात्री ने मानव जाति को सर्प रूपी बुराई से मुक्ति दिलाई।
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