अच्छाई की प्रेरणा - prernadayak kahani in hindi short
संत रविदास जी अपने कार्य में निमग्न रहते थे और शेष समय भगवद्भक्ति में बिताते थे। उनका जीवन अनेक प्रेरणादायक बातों से भरा हुआ है।
ऐसी ही एक कथा है कि उनके पास एक व्यक्ति प्रायः अपनी पादुकाएं ठीक कराने के लिए आता था, लेकिन वह कम के बदले उन्हें खोटे (नकली) सिक्के देता था। रविदास जी उस व्यक्ति को कुछ नहीं कहते थे।
एक दिन रविदास जी कही बाहर गए थे और उनकी जगह उनका एक शिष्य पादुकाएं ठीक करने का काम कर रहा था। वह व्यक्ति उस दिन भी आया और पादुका ठीक कराकर खोटे सिक्के देने लगा। शिष्य ने खोटे सिक्के लेने से मना कर दिया और पादुका दिए बिना ही उसे लौटा दिया।
जब संत रविदास जी को यह बात पता चला तो उन्होंने शिष्य से कहा कि तुम्हे उनकी पादुका ठीक कर देनी चाहिए थी। जब वह खोटे सिक्के देता है तो मैं ले लेता हूं और उन्हें जमीन में गाड़ देता हूं, ताकि कोई और व्यक्ति इन सिक्कों से किसी को ठग न सके। दूसरों को ठगी से बचाना भी तो एक तरह की सेवा ही है। अगर कोई व्यक्ति गलत काम करता है तो हमें उसे देखकर अपनी अच्छाई नहीं छोड़नी चाहिए।
प्रेरक प्रसंग, देवत्व की परीक्षा - prernadayak kahani chhoti
एक मंदिर में देव प्रतिमा पर चढ़ाए गए पुष्प ने क्रुद्ध होकर पुजारी से कहा, तुम प्रतिदिन मुझे चढ़ाकर इस प्रस्तर प्रतिमा की पूजा करते हो, जबकि पूजा मेरी होनी चाहिए, क्योंकि मैं कोमल, सुंदर, सुवासित हूँ। यह तो कठोर पत्थर है।
पुजारी ने कहा, कोमलता, सुंदरता और सुवास का गुण तुम्हे ईश्वर ने दिया है। इसके लिए तुम्हे कोई श्रम नहीं करना पड़ा है। पर इस देव प्रतिमा का निर्माण बड़ी कठिनाई से हुआ है। कठोर पत्थर को देव प्रतिमा बनने के लिए छेनी-हथौड़ी के प्रहार सहने पड़ते हैं। चोट लगते ही अगर पत्थर टूटकर बिखर जाता तो वह कभी भी देव प्रतिमा नहीं बन पाता।
एक बार कठोर पत्थर देव प्रतिमा में ढल जाए तो लोग उसे अदर भाव से मंदिर में स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना करते हैं। इस प्रस्तर की सहनशीलता और उसके धैर्य ने ही इसे देव प्रतिमा के रूप में पूजनीय तथा वंदनीय बना दिया है। यह सुनकर पुष्प मुस्कुरा दिया। वह समझ गया था कि कठिन परीक्षा को धैर्यपूर्वक व सफलतापूर्वक पार किए बिना देवत्व प्राप्त करना असंभव है।
प्रेरक प्रसंग गौतम बुद्ध - prerna dayak kahani gautam buddha
गौतम बुद्ध एक गांव में जीवन के सत्य तथा सारगर्भित पर उपदेश दे रहे थे। वहां उपस्थित एक व्यक्ति बुद्ध से अपने जीवन की समस्याओं का उपाय प्राप्त कर रहा था। गांव का एक निर्धन व्यक्ति सभीबको दुखी मनोभाव से जाते और प्रफुल्लित होकर लौटते देखता। उसने सोचा क्यों न मै भी अपने दुखों से मुक्त होने का उपाय जान लू, फिर वह निर्धन व्यक्ति बुद्ध के समझ पहुंचा।
उसने पूछा, इस गांव में अधिकतर सभी व्यक्ति सुखी और समृद्ध हैं, फिर मै ही निर्धन क्यों हु?
बुद्ध ने कहा, क्योंकि तुमने आज तक कभी किसी को कुछ दिया ही नहीं! उस व्यक्ति ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, मेरे पास दूसरो के देने के लिए क्या है? मै तो स्वयं भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन कर पाता हूं।
बुद्ध ने कहा जो धन तुम्हारे पास है, संभवतः उसे तुम भूल चुके हो। सबको प्रसन्नता देने के लिए तुम्हारे पास मुस्कान है। करुणामयी तथा प्रेममयी शब्दों के उच्चारण हेतु मुंह है। दो भुजाएं सभी की सहायता के लिए मिली है। इतनी अमूल्य निधियां होने पर कोई निर्धन कैसे हो सकता है?
बुद्ध ने कहा, निर्धनता का भाव त्याग कर जीवन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करो। बुद्ध के इस ज्ञान रूपी संदेश से उस व्यक्ति की मनोदशा ही नहीं, बल्कि उसका जीवन भी परिवर्तित हो गया।