Ramdhari singh dinkar poem in hindi ।। Beautiful poem ram dhari Singh dinkar
अंबर के गृह गान रे, घन पाहुन आए।
इंद्रधनुष मेचक रुचि हरी,
पीत वर्ण दामिनी घुती न्यारी,
प्रिय की छवि पहचान रे, नीलम घन छाए।
वृष्टि विकल घन का गुरु गर्जन,
बूंद बूंद में स्वप्न विसर्जन,
वारिद सुकवी समान रे, बरसे कल पाए।
तृण, तरु, लता, कुसुम पर सोई,
बजने लगी सजल सुधि कोई,
सुन-सुन आकुन प्राण रे, लोचन भर आए।
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