Essay on social problem of our society ।।Cause and prevention of India's social problem in Hindi ।। Samajik Samayal par lekh
भारतवर्ष एक विशाल देश है। अपनी विशालता के कारण इसमें भिन्नता अर्थात जाति, धर्म, भाषा, आचार-विचार आदि में एक भाव दूसरे भाव से अलग मालूम होता है। हम विभिन्नता में एकता लिए हुए हैं। इस दृष्टि से हमारा देश एक प्रकार से अनोखा देश है। यहां पंद्रह भाषाएं हैं। असंख्य उपभाषाएं तथा बोलियां है। अजीब या अनोखे प्रकार के धर्म है। सभी को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता है। यहां की भूमि कहीं पहाड़ी, पथरीली, कहीं पठार कहीं मैदान तथा कहीं ऊंची-नीची है। इन सब बातों का प्रभाव यहां के निवासियों पर पड़ता है। हम देश के रूप में एक होते हुए भी सामाजिक रुप से एक नहीं है। हमारा समाज तमाम रूपों में बंटा है। हर समाज ने अपने विचार तय कीए है। उस समाज के लोग उन नियमों पर चल रहे हैं।
पुरानी लकीर के फकीर बना रहना हमारी आदत हो गई है। हम परिवर्तन में विश्वास नहीं करते हैं। अंधविश्वास और रूढ़िवादी शगुन-अपशगुन भाग्यवान हमारे धर्म में शामिल है। धर्म के बेईमान ठेकेदारों को हमारे समाज के लोग ईश्वर का नया अवतार मान लेते हैं। जोगिया वस्त्र पहने व्यक्ति को हमारे यहां संत मान लिया जाता है। हर जाति तथा धर्म के लोगों ने, न जाने कितने लोगों को ईश्वर बना दिया है। साधारण जनता राजा, महाराजा, नेताओं तथा पढ़े लिखे लोगों का अनुकरण करती है। जबकि समाज की यह तथाकथित लोग झूठे बेईमान भ्रष्ट और ठग के सिवा कुछ नहीं है। ऐसे समाज में हम हजारों वर्षों से जी रहे हैं। सामाजिक सुधारकों ने अपने-अपने में समय में समाज में सुधार के कार्यक्रम चलाए लेकिन हम कोल्हू के बैल की तरह अपने पुराने घिसे पीटे रास्ते पर ही चक्कर काटते रहे हैं।
ऐसे समाज में समस्याएं ही समस्याएं होती है हमारे देश में रोज दंगे-फसाद, मारधाड़, बलात्कार, दुराचार, अत्याचार आदि साधारण बातें हो गई है। अशिक्षा, अज्ञानता, निर्धनता से समाज में तीन-चौथाई भाग पशुवत जीवन जी रहा है। छुआछूत, ऊंच-नीची, जातिवाद ,भाई-भतीजावाद, संकीर्णता ने हमारे समाज को नरक बना दिया है। लोग आपस में कहते हैं-इस भारतवर्ष से तो शायद नरक अच्छा होगा। नारियों के प्रति अत्याचार की खबरें रोज अखबार में छप रही है। दहेज प्रथा श्रेष्टता का प्रतीत हो गई है। पापी, पाखंडी और चोर हमारे समाज में धर्मगुरु की तरह पूजनीय हो गए हैं। भ्रष्टाचार आज सबसे बड़ी समस्या हो गई है। हमारे नेताओं की भ्रष्टाचार की कहानी नए-नए रूप में सामने आ रही है। कुर्सी पर बैठे क्लर्क या बाबू तथा आफीसर यमराज के दूतो का व्यवहार सीख रहे हैं। कुछ लोग गीत में इस महान वाक्य को दोहरा रहे हैं-जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। यदि जो हम देख या सुन रहे हैं। सब अच्छा है, तो बुरा क्या है।
हमारा समाज घोर अव्यवस्थित हो गया है। हमारे देश में इतने धर्म है कि उनका नाम याद करने में पसीना छूटने लगता है। इतनी जातियां, उपजातियां है कि जिनकी गिनती करने में हजारों सामाजिक और राजनैतिक या सरकारी कर्मचारी मर-खप गए हैं लेकिन पूरी गिनती नहीं कर पाए। चोरबाजारी, काला धन कमाने वाले लोग समाज के पूज्य व्यक्ति है। महंगाई, मुद्रास्फीति ने हमारे समाज को कुचल दिया है।
कुल मिलाकर हमारा सामाजिक ढांचा विकृत हो चुका है। इस समय सुधार करना सरल नहीं है। यदि कोई जनसेवक सुधार के लिए आगे आता है। तो गुंडे, चोर और उचक्के राजनीतिज्ञ तथा उनके गुंडे सब कुछ चौपट करने पर तुल जाते हैं। क्योंकि उनको मूर्खा अनुयायियों या वोटरों की जरूरत होती है। यदि समाज में सुधार हो गया तो नेता और साधारण नागरिक में कोई अंतर नहीं रह जाता है। यहां नेता का अर्थ धर्म की आड़ में तीर चलाने वाले छिपे लोगों से भी है।
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