कर्म क्या है भगवान बुद्ध की प्रेरणदायक कहानी Best motivational story in hindi for Gautam Buddha
एक बार गौतम बुद्ध से एक व्यक्ति पूछता है। कर्म क्या है, बुद्ध मुस्कुराते हैं और कहते है, मै तुम्हे एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं। एक बार एक राजा अपने मत्री के साथ अपने ही नगर में एक दुकान के सामने से गुजर रहे होते है। राजा का यह अनुभव है कि वह जब भी उस दुकान के सामने से गुजरते हैं तो, उनके भीतर से यह आवाज आती है कि उन्हें उस दुकान वाले को दण्डित करना चाहिए। राजा यह नहीं जानते कि उनके भीतर से यह आवाज क्यों आती है और उनका मन क्रोध से क्यों भर जाता है। वह क्यों उस दुकानदार को दंडित करना चाहते हैं। परंतु वे जब भी उस दुकान से गुजरते हैं, तो उनके मन में यह विचार उठता है। राजा अपने मत्री से कहते है। मत्री क्या तुम इस दुकानदार को जानते हो, मत्री कहता है, नहीं राजन मै इस दुकानदार को नहीं जानता। राजा कहते है, मै जब भी इस दुकान के आस पास होता हूं। मेरा मन क्रोध से भर जाता। मेरा मन करता है कि मै उस व्यक्ति को दंड दू। परन्तु मेरे पास कोई कारण नहीं है। तुम तो जानते ही हो मेरा स्वभाव बड़ा शांत रहा है। परंतु न जाने क्यों जब भी मै इस दुकान के पास से भी गुजरता हूं। तो मेरा मन क्रोध से भर जाता है। जबकि आज तक मै इस दुकानदार से मिला भी नहीं हूं।
मत्री कहता है, हम इस समस्या का कोई न कोई हल जरूर निकाल लेंगे। अब राजा और मत्री अपने महल पहुंच जाते है। राजा कुछ समय बाद यह बात भूल जाता है परन्तु यह बात मत्री को याद रहती है। मत्री इस समस्या का कारण खोजने के लिए भेष बदलकर उस दुकानदार के पास जाता है। और उस दुकानदार से कहता है, और भाई कैसा चल रहा है, तुम्हारा काम। वह दुकानदार कहता है मत पूछो भाई, बड़ी समस्या है, दिन भर बहुत थोडा ही धन इकट्ठा हो पाता है। लोग आते है दुकान पर लकड़ीया देखते है और तारीफ भी करते हैं, परंतु कोई खरीदता नहीं है।
अब तो केवल एक ही उपाय है कि हमारे राजा की मृत्यु हो और उसका मत्री लकड़ी लेने हमारी ही दुकान पर आए तब तो कुछ बात बन सकती हैं वरना इसी तरह गुजारा चलता रहेगा। मत्री कहता है, अरे भाई कुछ लकड़ीया हमें भी दो हम भी खरीदना चाहते है। और कुछ लकडीया खरीद कर वह राजा को दें देता है। और कहता है, महाराज यह लकड़ीया उस दुकानदार ने आपके लिए भेजवाई है। जिसकी दुकान के सामने जाकर आपको उसके प्रति क्रोध महसूस होता है। राजा उस लकड़ीयो को लेते हैं, और उस सुगन्ध को महसूस करते हैं, और कहते है, अरे मै तो बे वजह ही उस व्यक्ति को दण्डित करना चाहता था। वह तो भला व्यक्ति है। राजा कुछ सोने की मोहरे मंगवाता है। और मत्री को कहता है, जाओ ये मोहरे उस व्यक्ति को दे दो जिसने ये लकड़ीया भेजवाई है। और मत्री उन सोने के मोहरे लेजाकर उस दुकानदार को देता है। वह दुकानदार भी बहुत खुश होता है। वह सोचता है, मैंने बिना वजह ही राजा के बारे में इतना गलत सोचा, हमारे राजा तो बहुत नेक इंसान है।
कहानी खत्म होती है, और बुद्ध उस व्यक्ति से पूछते है कुछ समझ में आया वह व्यक्ति कहता है। कर्म केवल शरीर से ही नहीं विचारो से होता है। बुद्ध कहते है जब तक हम सोचेंगे ही नहीं तब तक हम शरीर का उपयोग कैसे कर सकते है। यदि हम अपने विचारो को सुधार ले तो हमारे सभी कर्म सुधर सकते है। राजा उस व्यक्ति को जानता भी नहीं था, और राजा उस व्यक्ति से कभी मिला भी नहीं था। परन्तु फिर भी राजा उसके प्रति क्रोध से भरा हुआ था। केवल उसके विचारो कि वजह से जो उस दुकानदार ने राजा के प्रति सोच थे।